पर आप जनाब

पत्थर मारिए, थूकिए, आप कहां के संविधान में हैं

मुबारक हो आप हिंदुस्तान में हैं

आप कहीं और होते, तो बहुत रोते

मगर मुस्कुराइए की आप हिंदुस्तान में हैं

लात खा कर भी, घात पाकर भी हम फिर खड़े हैं

आप फिर से मासूम बन जाइए, आप हिंदुस्तान में हैं

ये भी बुरा है वो भी, बुराई हाय पूरे जहां में है

पर आप जनाब, मुस्कुराइए

आप हिंदुस्तान में हैं

ढूँढो

ना गिरिजा ना मस्जिद ना शिवाले ढूँढो

पहले भूखों के लिए निवाले ढूँढो

खादी वालों का तो धंधा ही है ये सब

जिसने अपना ही घर जलाया पहले वो मशालें ढूँढो

रोशनी दिखा कर अक्सर लूट लेते हैं लोग

बेहतर ये है की तुम अँधेरो में उजाले ढूँढो

एलान-ऐ-जंग हर बात पर ना किया करो

कुछ नये मसले ढूँढो, कुछ नयी मिसालें ढूँढो

शरारा

कई पतझड़ चला हुँ नंगे पाँव यक्सर

लोगों को लगता है कि मैं बहारों में उठा

चुप रहना मेरा जमाने को नापसंद आया

आवाज़ बुलंद करी तो मैं अशआरों (लफ़्ज़ों)से उठा

मुर्दों से भी सिर्फ़ माँगने आते है लोग

बात तब की है जब मैं मज़ारों से उठा

राख होने का मेरे बहुत यक़ीन था सबको

मैं वही शोला हूँ जो शरारों (चिंगरीयों) से उठा

आग़ाज़

गिर के फिर फिसलने का रिवाज होना चाहिए

इश्क़ के हर मर्ज़ (बीमारी) का इलाज होना चाहिए

मैं तुम से रूठता हुँ तो तुम भी रूठने लगते हो

तुम्हारा अपना भी तो कोई अन्दाज़ होना चाहिए

मोहब्बत अलग बात है और दीन अलग

राज जो कहोगे मुझसे वो राज होना चाहिए

चिंगरियाँ कभी राख होतीं हैं कभी शोला

अंजाम-ए-बग़ावत कुछ भी हो आग़ाज़ (आरम्भ) होना चाहिए

बेख़ुदी

वो आग कबकि बुझ चुकी

धुएँ से जल रहा हुँ मैं

अब कुछ नए से फ़रेब ढूंढ़ता हुँ

दोस्त बदल रहा हुँ मैं

सर्द रातों की ये सुलगती सी भूख

सपने निगल रहा हुँ मैं

ये सब धुँधला सा क्यूँ नज़र आता है

क्या फिर संभल रहा हुँ मैं

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