शरारा

कई पतझड़ चला हुँ नंगे पाँव यक्सर

लोगों को लगता है कि मैं बहारों में उठा

चुप रहना मेरा जमाने को नापसंद आया

आवाज़ बुलंद करी तो मैं अशआरों (लफ़्ज़ों)से उठा

मुर्दों से भी सिर्फ़ माँगने आते है लोग

बात तब की है जब मैं मज़ारों से उठा

राख होने का मेरे बहुत यक़ीन था सबको

मैं वही शोला हूँ जो शरारों (चिंगरीयों) से उठा

Published by

Piyush Kaushal

Naive and Untamed!

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