तुझको चलना होगा

रात को घेर लिया है बादलों ने
चाँद को मगर निकलना होगा
तुझको चलना होगा

संघर्ष जलाकर कुंदन कर देता है
इस मोम के आगे आग को पिघलना होगा
तुझको चलना होगा

दिन को धकेलकर सूरज आगे बढ़ता है
इस शाम के आगे मगर सूरज को ढलना होगा
तुझको चलना होगा

जीवन मंथन में सुर भी हैं असुर भी
अमृतपान के लिए पहले विष निगलना होगा
तुझको चलना होगा

पियूष कौशल

मर्द

ये औरतें घूँघट वूँघट

हिजाब विज़ाब में रहे तो अच्छा है

ये लड़कियाँ ज़्यादा बोले ना

हिसाब विसाब में रहे तो अच्छा है 

ये लक्ष्मीबाई, माँ टेरेसा

किताब विताब में रहे तो अच्छा है

मर्द को ईश्वर मानो, बस मानलो क्यूँकि…

ज़्यादा ना हों सवाल जवाब तो अच्छा है

शर्म है औरत का ही गहना

क़ायम रहे ये नक़ाब तो अच्छा है

हवा

पसंद नही आती तुम्हें अब नादानियाँ मेरी

अपने बड़प्पन की कोई दवा तो करो

कई बस्तियाँ वीरान की है इस छोटे दीये ने

आज़मा लो, ज़रा तुम हवा तो करो

अमा छोड़ो यार…

यूं ही बेसबब बेफिक्र बेहिसाब जिया करो
जहां जिन्दगी का नशा हो जरा झूम के पिया करो

लोग तो परेशान यूं ही रहेंगे हर बात से
इसका अच्छा तो उसका बुरा है, जो मन में आए किया करो

चौखट पे धूप रहने दो, होंठों पे हल्की सी मुस्कान
जहां अंधेरे दिखें, उजाले उड़ा दिया करो

लोगों को आपस में ही करने दो सारी बातें
अमा छोड़ो यार तुम आसमान से बातें किया करो

पर्दा

वक़्त के साथ हथेली पर चढ़ गया है एक सफ़ेद पर्दा
दिन रात खुद से आंखें बचाकर इस पर उंगलियां घुमाता हूँ
मानो कोई जादू ही है, ये रहा शर्मा और वो अख्तर…
मिलाता सबसे है पर मिलने किसी से नहीं देता
वो जो किस्से कहानियां होती थी हर शाम सुनने सुनाने को
आजकल बड़ी जल्दी में रहती है, टाइम लाइन से होकर बड़ी तपाक से गुजर जाती है
बुआ, चाचा, मामा सब यहीं हैं इन हाथों में – ऐंठे से मुस्कुराते अपनी फोटो से
यादें मगर कुछ गमगीन नज़र आती हैं
इस सफ़ेद परदे की काली करतूतें रंगीन नज़र आती हैं

पियूष कौशल

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