राम आयेंगे

टलेगा जब बनवास राम आयेंगे
जब छूटेगी सब आस राम आयेंगे

सागर का कंठ सुखाने को
पतितों को हृदय लगाने को
जब शबरी सी हो आस राम आयेंगे

कीचड़ में कमल खिलाने को
नैया को पार लगाने को
केवट सा हो विश्वास राम आयेंगे

छल कपट द्वेष और अहंकार के आँगन में
जहां सत्य हो करता वास राम आयेंगे

उन्वान

मेरी कुछ नज़्में हुईं कुछ अफ़साने हुए
मुझसे बिछड़े जमाने को जमाने हुए

हर सालगिरह पर गिरहें उलझती जाती हैं
हम जितने नए हुए, पुराने हुए

एक ख्वाहिश के हत्थे है एक दीवाना सूली पे
ज़रा गिन के बता तो कितने दीवाने हुए

लहू निचोड़ कर मुस्कुराना पड़ता है
भला ये कैसे रिश्ते निभाने हुए

कभी फुर्सत में हमें मिलने तो आ जिंदगी
बहुत अब तेरे बहाने हुए

पियूष कौशल

रात

कल मैंने चांद से खुरच खुरच कर रात सफेद की
फिर नजर आए कुछ पन्ने
बुकमार्क कर के भुल गया था शायद, आगे बढ़ा नहीं
आसमान आंखें फ़ाडे तकता रहा, मैं रात घोल कर पी गया

पियुष कौशल

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