टलेगा जब बनवास राम आयेंगे
जब छूटेगी सब आस राम आयेंगे
सागर का कंठ सुखाने को
पतितों को हृदय लगाने को
जब शबरी सी हो आस राम आयेंगे
कीचड़ में कमल खिलाने को
नैया को पार लगाने को
केवट सा हो विश्वास राम आयेंगे
छल कपट द्वेष और अहंकार के आँगन में
जहां सत्य हो करता वास राम आयेंगे
मेरी कुछ नज़्में हुईं कुछ अफ़साने हुए
मुझसे बिछड़े जमाने को जमाने हुए
हर सालगिरह पर गिरहें उलझती जाती हैं
हम जितने नए हुए, पुराने हुए
एक ख्वाहिश के हत्थे है एक दीवाना सूली पे
ज़रा गिन के बता तो कितने दीवाने हुए
लहू निचोड़ कर मुस्कुराना पड़ता है
भला ये कैसे रिश्ते निभाने हुए
कभी फुर्सत में हमें मिलने तो आ जिंदगी
बहुत अब तेरे बहाने हुए
पियूष कौशल
अंधेरा सिर्फ़ अपने रंग से बदनाम है
उजाले जुर्म करके इसी के ओढ़ में दुबकते हैं
रेत से समंदर की दोस्ती यूँ ही तो नहीं
लिख कर मिटा देना ही जीने का सलीक़ा है
वो जिन राहों से गुज़री होगी
उन पर भी क्या गुज़री होगी
What time is it?
the day’s pale blue blood
spills across the horizon
impregnating the dark
a new moon is born
chuckling in silence – not crying
the breeze hymns some verses
Rumi probably
the sky smiles gently now
what time is it?
The Sun shone brighter than he ever knew
In the horizon, some dreams were on fire
कल मैंने चांद से खुरच खुरच कर रात सफेद की
फिर नजर आए कुछ पन्ने
बुकमार्क कर के भुल गया था शायद, आगे बढ़ा नहीं
आसमान आंखें फ़ाडे तकता रहा, मैं रात घोल कर पी गया
पियुष कौशल