ख़ुद को में

कोई सूरत थी जो नज़र नहीं आती थी 

ताउम्र निहारता रहा ख़ुद को में 

जाने किस मंज़िल का मुंतज़िर रहा 

रस्तों में तलाशता रहा ख़ुद को मैं 

हर शख़्स में बुराई दिखाईं देती रही 

हर किसी में तराशता रहा ख़ुद को मैं

शख्स

दिल कांच का लेकर, किस किस से तुम टकराओगे
इससे उससे खुद से, किस किस से नजर चुराओगे
वो खुशमिजाज शख्स आईने वाला, गम का दरिया है
नजर मिली तो डुब के मर जाओगे

पियुष कौशल

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