मुझे अछूत होने का वर दो प्रभु
कोई शबरी अपने राम से मिले
मैला कर न सके अहंकार मुझे
कोई सुदामा अपने श्याम से मिले
कर्मभूमि में कर्म ही धर्म है
मुझे विश्राम न विश्राम में मिले
सूरज बुझते ही दीये खिलने लगते हैं
सुबह का भुला जैसे शाम में मिले
आशा निराशा का ये अन्तर्द्वेन्द परस्पर है
मुझको मोक्ष इस महासंग्राम से मिले