मोक्ष

मुझे अछूत होने का वर दो प्रभु
कोई शबरी अपने राम से मिले

मैला कर न सके अहंकार मुझे
कोई सुदामा अपने श्याम से मिले

कर्मभूमि में कर्म ही धर्म है
मुझे विश्राम न विश्राम में मिले

सूरज बुझते ही दीये खिलने लगते हैं
सुबह का भुला जैसे शाम में मिले

आशा निराशा का ये अन्तर्द्वेन्द परस्पर है
मुझको मोक्ष इस महासंग्राम से मिले

उन्वान

मेरी कुछ नज़्में हुईं कुछ अफ़साने हुए
मुझसे बिछड़े जमाने को जमाने हुए

हर सालगिरह पर गिरहें उलझती जाती हैं
हम जितने नए हुए, पुराने हुए

एक ख्वाहिश के हत्थे है एक दीवाना सूली पे
ज़रा गिन के बता तो कितने दीवाने हुए

लहू निचोड़ कर मुस्कुराना पड़ता है
भला ये कैसे रिश्ते निभाने हुए

कभी फुर्सत में हमें मिलने तो आ जिंदगी
बहुत अब तेरे बहाने हुए

पियूष कौशल

तुझको चलना होगा

रात को घेर लिया है बादलों ने
चाँद को मगर निकलना होगा
तुझको चलना होगा

संघर्ष जलाकर कुंदन कर देता है
इस मोम के आगे आग को पिघलना होगा
तुझको चलना होगा

दिन को धकेलकर सूरज आगे बढ़ता है
इस शाम के आगे मगर सूरज को ढलना होगा
तुझको चलना होगा

जीवन मंथन में सुर भी हैं असुर भी
अमृतपान के लिए पहले विष निगलना होगा
तुझको चलना होगा

पियूष कौशल

मर्द

ये औरतें घूँघट वूँघट

हिजाब विज़ाब में रहे तो अच्छा है

ये लड़कियाँ ज़्यादा बोले ना

हिसाब विसाब में रहे तो अच्छा है 

ये लक्ष्मीबाई, माँ टेरेसा

किताब विताब में रहे तो अच्छा है

मर्द को ईश्वर मानो, बस मानलो क्यूँकि…

ज़्यादा ना हों सवाल जवाब तो अच्छा है

शर्म है औरत का ही गहना

क़ायम रहे ये नक़ाब तो अच्छा है

सब ठीक है

हेलो, हाँ यहाँ सब ठीक है
हाँ हाँ वो BP शुगर की दवा ले ली
ज़िन्दगी कड़वी सी हो गई है
ये कम्बख्त डॉक्टर मीठा खाने नहीं देता

तेरी मम्मी को कम सुनाई देता है अब
उसकी चुगली भी करूँ किसी से तो खिसिया के हॅंस देती है
बाहर भी कम ही जाती है, कहती है ज़माने के साथ
ये घुटने भी बदल जाते तो सहूलियत होती

ख़ैर यहाँ सब ठीक है
अपना हाल सुनाओ तुम, सुना है वहाँ जाड़ा खूब है
बर्फ चढ़ी रहती हैं लोगो पे, किसी का किसी से कोई राब्ता नहीं
बच्चे जब छोड़ जाते होंगे, तो इन बड़े घरों में
लोग क्या एक दूसरे को ढूंढ पाते होंगे
खैर मेरी उम्र हो गयी है जाने दो
वैसे यहाँ सब ठीक है…

पियूष कौशल