पहला मिसरा जिन्दगी, दूसरा तुम
ये शेर मुकम्मल है…
Category: मेरी कुछ कवितायेँ
गैट लोस्ट
“गैट लोस्ट” कहा उसने मुझे
खो जाने का भी एक अलग ही मजा है…
पियूष कौशल
रात भर
तेरे ख्वाब महकते रहे रात भर
मुझे फूल किताबों में मिलते रहे रात भर
क्यों…
चीथड़े बिखरे पड़े थे मेरी रूह और जिस्म के
वो लोथड़े टटोल कर मेरा मज़हब ढूंढ़ते रहे. ..
#differently abled
स्टापू खेलते खेलते मस्ती में छपाक से
हड़काते लुढ़काते वक़्त ठेल दिया हमने
दो पैरों वाले को मगर जिन्दगी बोझ लगती है
फिर
आज फिर वही बात हो गई
सुबह ढूंढते ढूंढते रात हो गई
पियूष कौशल
अमा छोड़ो यार…
यूं ही बेसबब बेफिक्र बेहिसाब जिया करो
जहां जिन्दगी का नशा हो जरा झूम के पिया करो
लोग तो परेशान यूं ही रहेंगे हर बात से
इसका अच्छा तो उसका बुरा है, जो मन में आए किया करो
चौखट पे धूप रहने दो, होंठों पे हल्की सी मुस्कान
जहां अंधेरे दिखें, उजाले उड़ा दिया करो
लोगों को आपस में ही करने दो सारी बातें
अमा छोड़ो यार तुम आसमान से बातें किया करो
हर हर महादेव…
“एक से सौ एक एक
सौ निर्गुण सगुण एक
राम रावण सबके एक
देव कोटि, महादेव एक”
हर हर महादेव…
पर्दा
वक़्त के साथ हथेली पर चढ़ गया है एक सफ़ेद पर्दा
दिन रात खुद से आंखें बचाकर इस पर उंगलियां घुमाता हूँ
मानो कोई जादू ही है, ये रहा शर्मा और वो अख्तर…
मिलाता सबसे है पर मिलने किसी से नहीं देता
वो जो किस्से कहानियां होती थी हर शाम सुनने सुनाने को
आजकल बड़ी जल्दी में रहती है, टाइम लाइन से होकर बड़ी तपाक से गुजर जाती है
बुआ, चाचा, मामा सब यहीं हैं इन हाथों में – ऐंठे से मुस्कुराते अपनी फोटो से
यादें मगर कुछ गमगीन नज़र आती हैं
इस सफ़ेद परदे की काली करतूतें रंगीन नज़र आती हैं
पियूष कौशल
ज़रा संभल के
जहन में न सही नज़र में रखो
हम धूप के पंछी हैं हमें न शजर (छाँव) में रखो
हमने तो उम्र भर बहुत दोस्त कमाए हैं, दुश्मन भी
तुम ये वसीयत, ये दौलतें अपनी कब्र में रखो
हम अंधेरों के जुगनू हैं, और वो भी दिलजले
तुम ये सारे आफ़ताब (चाँद) अपने घर में रखो
सब्र में तो उम्र पूरी कट गयी हमारी
तुम हमारा नाम अब बेसब्र में रखो
भरोसा एक बर्फीली सड़क है, याद रहे
नीयत के पाँव ज़रा संभल के रखो
पियूष कौशल