रात

चाँद के पौधे पे रात उग आयी है

आओ अब ये दिन बुझाते हैं

हो जिसके किनारे आसमान टहलते

बारिशें बाँध के वो समन्दर उड़ाते हैं

मुद्दत हुई ये ख़ामोशियाँ शिकन ओढ़े बैठी हैं

कोई बात करते हैं, कुछ बात बनाते हैं

रात से बिछड़कर सुबह फिर से रोने लगी

ओस के बिस्तर पर फिर एक शाम बिछाते हैं

Published by

Piyush Kaushal

Naive and Untamed!

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