रेत से समंदर की दोस्ती यूँ ही तो नहीं
लिख कर मिटा देना ही जीने का सलीक़ा है
रेत से समंदर की दोस्ती यूँ ही तो नहीं
लिख कर मिटा देना ही जीने का सलीक़ा है
मद्धम आँच पर धीमे धीमे
सहमे सकुचे कर नयन नयन
तुम जब पर परवाज़ पकड़ती हो…
अदरक के टुकड़े बाँच बाँच
चीनी के मीठे काँच काँच
तुम अधरों पे जब धरती हो…
किसी श्वेत झील के झरने में
जब श्याम रंग को त्याग त्याग
तुम कत्थई रंग पकड़ती हो…
सब घोल वोल के हृदय विकार
और छान के सारे कपट वपट्
प्याले में रपट उतरती हो…
हृदयहारिता सी तुम लगती हो
मुझे कविता सी तुम लगती हो ।।
इमारतें बड़ी हो गई है इर्द गिर्द
अब मेरे मकान पे धूप नहीं गिरती
ड्योढ़ी की दरारों पे उग आये है स्याह साये
हाथों से पंखा झलती अब हवा नहीं फिरती
फ़्लाइओवर है, पुल है, हैं चौड़ी चौड़ी सड़कें
घर तक ले जाए हमें जो वो राह नहीं मिलती
ये फ़ाख्ते, कबूतर क्यों चुनते हैं तिनके दिन भर
आँधियों से तो किसी को पनाह नहीं मिलती
कोई सूरत थी जो नज़र नहीं आती थी
ताउम्र निहारता रहा ख़ुद को में
जाने किस मंज़िल का मुंतज़िर रहा
रस्तों में तलाशता रहा ख़ुद को मैं
हर शख़्स में बुराई दिखाईं देती रही
हर किसी में तराशता रहा ख़ुद को मैं
काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
तोल नाप के ग़ज़ल नहीं कहता
समा भाँप के ग़ज़ल नहीं कहता
लय में कहनी की है कोशिश मगर
मैं मीटर नाप के ग़ज़ल नहीं कहता
आप हैं बड़े शायर, लफ़्ज़ बड़े मुश्किल कहते हैं
आप ठीक ही कहतें है मैं ग़ज़ल नहीं कहता
I am my own doppelgänger,
wearing different shades of me every day
The genuine sad and the fake happy
The mentally abled and the emotional sappy
I do good self-impressions
so I am told
Which part of me is bought
and which is sold
Nobody would know
nobody will be told
I am my own doppelgänger…
एक और दिन की है बात भैया
चलो सुर से छेड़ें साज़ भैया
उँगलियाँ कीबोर्ड पे पटक पटक
मैनेजर भेजे काज भैया
बातें दे घुमा घुमा, कर भ्रमण भ्रमण
तरक़्क़ी के हैं ये राज़ भैया
रहीमन बैठे मीटिंग में
निकले ना हमरी आवाज़ भैया
शुक्रवार सुमधुर कोयल सा
सोमवार पे बैठा है बाज़ भैया
महफ़िलें रोशन हैं शहर भर
दिलों में है तहख़ाने अब भी
संभलना फ़ितरत नहीं मेरी पर
लोग आये हैं मुझे बहकाने अब भी
मैं वो दरिया हूँ जो प्यासा भी है
मेरी तलाश में है वीराने अब भी
नींद में भी एक खटका सा रहता है
एक ग़ज़ल रहती है मेरे सिरहाने अब भी
नज़र नज़र की बात है नज़र नज़र उतारी गई
बस एक मोहब्बत के नाम पे ना जाने कितनी ग़ज़लें वारी गई
कतरा कतरा पिघला हूँ रोशनी की चाह में
मुझसे ये अँधेरों की उधारी ना उतारी गई
कोई हंस के बोले तो साथ चल देता हूँ
जाने कहाँ अपनी ख़ुद्दारी गई
दश्त-ए-तन्हाई ए हिज्र में खड़ा सोचता हूँ
कहाँ वो यार गये कहाँ वो यारी गई