सिमट कर ख़ुद ही में बिखर गई होगी
उस रोज़ जो अपने घर गई होगी
ऊँगली पकड़ने वाले ने हाथ दिखाए हैं
रूह सुलगी होगी साँसे भर गई होंगी
वो माँ जिसने इक “बेटे” के लिए, कई नन्ही चीख़ें जलाईं
अपने ही चिराग़ की रोशनी से डर गई होगी
सिमट कर ख़ुद ही में बिखर गई होगी
उस रोज़ जो अपने घर गई होगी
ऊँगली पकड़ने वाले ने हाथ दिखाए हैं
रूह सुलगी होगी साँसे भर गई होंगी
वो माँ जिसने इक “बेटे” के लिए, कई नन्ही चीख़ें जलाईं
अपने ही चिराग़ की रोशनी से डर गई होगी