टलेगा जब बनवास राम आयेंगे
जब छूटेगी सब आस राम आयेंगे
सागर का कंठ सुखाने को
पतितों को हृदय लगाने को
जब शबरी सी हो आस राम आयेंगे
कीचड़ में कमल खिलाने को
नैया को पार लगाने को
केवट सा हो विश्वास राम आयेंगे
छल कपट द्वेष और अहंकार के आँगन में
जहां सत्य हो करता वास राम आयेंगे
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मोक्ष
मुझे अछूत होने का वर दो प्रभु
कोई शबरी अपने राम से मिले
मैला कर न सके अहंकार मुझे
कोई सुदामा अपने श्याम से मिले
कर्मभूमि में कर्म ही धर्म है
मुझे विश्राम न विश्राम में मिले
सूरज बुझते ही दीये खिलने लगते हैं
सुबह का भुला जैसे शाम में मिले
आशा निराशा का ये अन्तर्द्वेन्द परस्पर है
मुझको मोक्ष इस महासंग्राम से मिले