लफ्ज़

मेरे अश्क का हर एक कतरा इसी पानी में है कहीं
ये मुझसे खुद आती जाती हवाओं ने कहा है

समन्दरों से भी ढूंढ लाते है तिनके वो
आँखों में जूनून का सुरमा जहाँ है

हर लहर के साथ उठती है इक टीस सी दिल में
वो कुरेद के पूछता हैं मुझे की ज़ख्म कहाँ है

कहता है वो की जानता है सब कुछ
सच बोल तो दूँ, पर और लफ्ज़ कहाँ है

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