कहीं कुछ हो की
तक़दीरें बदल जाएँ ये अश्क़ों की …
दिल में तलब है की
मस्जिदें बदल जाएँ ये सजदों की ..
क्या हो तुम और क्या हैं हम ..
ग़म ही में ढूँढ़ते है ग़म..
बात तब हो की जब मौत भी हो ठहाकों की
करें जज़्बात का सौदा
या अपने आप का सौदा
नज़्म तब हो की
कुछ बातें सुनी जाए ये जज़्बों की
खफा खुद से या खुद-आ से
लहर सी इस धरा से
या उफनते आसमान से
कहें कुछ भी मगर ये सब
मेहेरबानी है रस्मों की
लडखपन मैं सरकती धुप
टहलती नींद बचपन की
वो किस्से मोहब्बत के,
वो चेहरे पे चमक सी अलग
करम उसके भरम उसके
फिसलती रेत वक़्तों की