मुझपर लोन हैं ज़िन्दगी का,
EMI ख्वाहिशों की मीलों की कतार में है
हर नए रिश्ते, नए त्यौहार से
मेरी जेबों में छाले पड़ते हैं
इंसान को अच्छा नहीं महँगा लगना चाहिए
समझ आ गया है अब
बालों में चांदी है सफ़ेद
रातों से सोना गायब है
क़र्ज़ जीने का चुकाता हूँ ,
मुझपर लोन है ज़िन्दगी का
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रुख…
चिंगारियों की भीड़ मैं इक शोला उठा
किसी अधूरे गीत सी अंगड़ाई ली
और बेखुदी की ताल में बोला
चलो हवाओं के रुख बदलते हैं
आग बनने की आग दिल में
अपने पीले लहू में रंग भरने चला
चिंगारियां बोली, शोला है तो भड़केगा
थोड़ा जलेगा, और बुझ जायेगा
शोला कुछ कहते-कहते रुक गया
वापिस मुड़ा और जलने लगा
व्यूह रच कर अपने मन में
अग्नि मंथन को चला
चिंगारियों को छेड़कर
वो शोलों को भेदता
अपने आप से लड़ता वो कभी
कभी दर्द को नकारता
चोट खाया अधमरा सा
धुंधली सी मंज़िल के आईने को पोंछकर
अपनी आग को ज़िंदा रखता रहा
उस आग की चाह में
कहीं लौ उठी उम्मीद की
इक लपट बनी, प्रचंड हुई
वो चिंगारियां अब राख थी
ये शोला अब इक आग था
फासले
करवटें लेती रातों के
ख्वाहिशों भरे फासले
समय से छूटे हुए चाहत के
ज़हमतों के वो फासले
ओट लेती सलवटों के
गुनगुनाते हुए फासले
जुबां पे लड़खड़ाते हुए प्यार के
इकरार के वो फासले
चाँद के और चांदनी के
रौशनी भरे वो फासले
वो उल्फत के धुओं में
दिल जलाते हुए फासले
नहाकर पाक लफ़्ज़ों में
इल्म-ऐ-जेहन के वो फासले
सिमट के होटों पे
सिहरती सांस के वो फासले
ज़िन्दगी के परवान पर
कभी न ख़त्म होते फासले
तेरे और मेरे और
हमारे वो फासले
वो फासले…