काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
तोल नाप के ग़ज़ल नहीं कहता
समा भाँप के ग़ज़ल नहीं कहता
लय में कहनी की है कोशिश मगर
मैं मीटर नाप के ग़ज़ल नहीं कहता
आप हैं बड़े शायर, लफ़्ज़ बड़े मुश्किल कहते हैं
आप ठीक ही कहतें है मैं ग़ज़ल नहीं कहता
मेरी कुछ नज़्में हुईं कुछ अफ़साने हुए
मुझसे बिछड़े जमाने को जमाने हुए
हर सालगिरह पर गिरहें उलझती जाती हैं
हम जितने नए हुए, पुराने हुए
एक ख्वाहिश के हत्थे है एक दीवाना सूली पे
ज़रा गिन के बता तो कितने दीवाने हुए
लहू निचोड़ कर मुस्कुराना पड़ता है
भला ये कैसे रिश्ते निभाने हुए
कभी फुर्सत में हमें मिलने तो आ जिंदगी
बहुत अब तेरे बहाने हुए
पियूष कौशल
हर बड़ा शहर सपने देता है
और अपने छीन लेता है
इश्क़ जो करा कीजे
ख़ुद से डरा कीजे
हर साँस लहू पीकर
हर ज़ख़्म हरा कीजे
ज़िंदा रहने को ज़रूरी है
आप हर रोज़ मरा कीजे
पहला मिसरा जिन्दगी, दूसरा तुम
ये शेर मुकम्मल है…
यूं ही बेसबब बेफिक्र बेहिसाब जिया करो
जहां जिन्दगी का नशा हो जरा झूम के पिया करो
लोग तो परेशान यूं ही रहेंगे हर बात से
इसका अच्छा तो उसका बुरा है, जो मन में आए किया करो
चौखट पे धूप रहने दो, होंठों पे हल्की सी मुस्कान
जहां अंधेरे दिखें, उजाले उड़ा दिया करो
लोगों को आपस में ही करने दो सारी बातें
अमा छोड़ो यार तुम आसमान से बातें किया करो
“एक से सौ एक एक
सौ निर्गुण सगुण एक
राम रावण सबके एक
देव कोटि, महादेव एक”
हर हर महादेव…
वक़्त के साथ हथेली पर चढ़ गया है एक सफ़ेद पर्दा
दिन रात खुद से आंखें बचाकर इस पर उंगलियां घुमाता हूँ
मानो कोई जादू ही है, ये रहा शर्मा और वो अख्तर…
मिलाता सबसे है पर मिलने किसी से नहीं देता
वो जो किस्से कहानियां होती थी हर शाम सुनने सुनाने को
आजकल बड़ी जल्दी में रहती है, टाइम लाइन से होकर बड़ी तपाक से गुजर जाती है
बुआ, चाचा, मामा सब यहीं हैं इन हाथों में – ऐंठे से मुस्कुराते अपनी फोटो से
यादें मगर कुछ गमगीन नज़र आती हैं
इस सफ़ेद परदे की काली करतूतें रंगीन नज़र आती हैं
पियूष कौशल
अभी गरीब हुं इसलिए दोस्त हैं मेरे
अमीर होता तो रिश्तेदार होते़़़
पियुष कौशल