काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
देखने दिखाने का ज़माना है यारों
खुद को खुश दिखाना है यारों
हर दिन बाज़ार में आती है इक नयी ख़ुशी
हर दिन नया क़र्ज़ चुकाना है यारों
जो कल आज से पीछे था, अब आगे है
सबको सबसे आगे जाना है यारों
ज़ोर आज़माइश अब खुद ही से है
खुद ही को आज़माना है यारों