जहन में न सही नज़र में रखो
हम धूप के पंछी हैं हमें न शजर (छाँव) में रखो
हमने तो उम्र भर बहुत दोस्त कमाए हैं, दुश्मन भी
तुम ये वसीयत, ये दौलतें अपनी कब्र में रखो
हम अंधेरों के जुगनू हैं, और वो भी दिलजले
तुम ये सारे आफ़ताब (चाँद) अपने घर में रखो
सब्र में तो उम्र पूरी कट गयी हमारी
तुम हमारा नाम अब बेसब्र में रखो
भरोसा एक बर्फीली सड़क है, याद रहे
नीयत के पाँव ज़रा संभल के रखो
पियूष कौशल