अपने ही गुनाहों का सबूत हो गया है
धरती माता का कपूत हो गया है
बाँट दिया जिसने धर्म, जाती, रंग, रूप में सबको
देखो देखो वो इंसान अछूत हो गया है
न कहीं जाने का रहा न मुंह दिखाने का
खुद के ही घर में ताबूत हो गया है
धरे रह गए सभी हथियार-ओ-आविष्कार
एक ही वार में अभिभूत हो गया है