तुम भी चढ़ाकर देखो अपने से किसी रिश्ते को
मतलब की आंच पर,
हमने अच्छे अच्छों को वहां रंग बदलते देखा है…
पियूष कौशल
तुम भी चढ़ाकर देखो अपने से किसी रिश्ते को
मतलब की आंच पर,
हमने अच्छे अच्छों को वहां रंग बदलते देखा है…
पियूष कौशल
सुबह की पहली किरण ने मेरी आँखें टटोली
कुछ अधूरे सपने अभी भी पलकों पे सो रहे थे
मेरी आँखों ने झूमते हुए बिस्तर को संभाला
उस सिराहने पर ही शायद कोई बादल बरसा था
वो चादर की सलवटें मेरे ख्यालों से रूबरू थीं
कुछ उलझी सी, बेदार सी, बेशर्म सी
आईने में दिख रहा था शख्स वो
वक़्त जिसके बालों में चांदी मल गया था
फिर सोचा यूँ की आज यादों में नहायेंगे जी भर के
वो बक्से जो बंद है सदियों से उनको भी रिहाई देंगे
अपनी आँखों में रख लेंगे मखमल से वो लम्हे
जिन लम्हों की छाँव में आज भी जिंदगी आसान हो जाती है
इक चाय की प्याली तब मेरी नींदों को दस्तक दी
लो मुर्दों का ये काफिला आज फिर से दफ्तर चल दिया
गहरा कोहरा है
नुक्कड़ वाले मोड़ पर आज भी बैठी है वो बुढ़िया,
खाली आँखों से आसमान टटोलती
हाथों में उसके लकीरे न होंगी शायद
चेहरे पर ही वक़्त ने जैसे नक़्क़ाशी जड़ दी हो
उस चाबी वाले गुड्डे मे चाबी भर मुस्कुराती
दिवाली पर दिलवाया था उसे, बड़ा खुश हुआ था
मेरी अच्छी माँ कहकर खूब ज़ोर से गले लगाया था
वक़्त चाबी भरना भूल गया शायद
वो चलते चलते रुक गया
न कदम उठा न हाथ बढ़ा – अँधेरा हुआ था तब
आज कोहरा है, गहरा कोहरा है
पियूष कौशल (शिव)
आज आँखों से बह गयी वो कहानी
जिसे कुछ सदियों से छुपाये हुए था
यूँ कौनसी शाम गुज़री उस रात की गोद मे
रो पड़ा वो ज़ख्म जिसे बरसों से बहलाये हुए था
अब हर सुबह लगती है वो ख्वाब की जिसमे
चाँद सूरज को गले लगाए हुए था
उसकी आँखों से बहती थी बहुत ग़ज़लें
शायद किसी शायर से दिल लगाए हुए था
ab nigal bhi le mujhe ae beparwaah zindagi
kab tak yun hi chewing gum sa chabaegi…
गूंजती लहर में
ये जो सांस की कशिश है
रेशमी सुबह की
ये जो नरम सी तपिश है
दूरियों का पर्दा
मेरी नब्ज़ अब भी काम है
होश है ये रुखसत
है ये प्यार या भरम है
मोम सा पिघलता
कहीं रेत सा फिसलता
ईमान बेईमान मेरा
चोर से क्या कम है
सुन बारिशें हैं नीली
मेरा दिल भी बेशरम है
प्यास बरसे ज़्यादा
ये पानी अब भी कम है
तू पास मेरे आई
कभी दूरियां बढ़ाएं
ओ यार तेरा प्यार
किसी क़त्ल से क्या कम है