Keemat

लोग नहीं जानते मेरी कीमत अभी
जो बिखरा पड़ा हूँ कोई उठाता नहीं

किसका घर जला है यहाँ, किसने राख मल ली है
कोई पूछता नहीं, मैं बताता नहीं

कुछ राज़ अपने, अपनों से कह दिए थे कभी
बस उस दिन से बातें में खुद को भी बताता नहीं

हाथ में खंजर से कुछ लकीरें जड़ दी हैं
जिसने लिख दी हैं, वो मिटाता नहीं

हवाओं की छत पर परिंदे शोर करने लगे हैं ‘शिव’
आदम तो बहुत हैं, इंसान कोई नज़र आता नहीं

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