धूप

इमारतें बड़ी हो गई है इर्द गिर्द 

अब मेरे मकान पे धूप नहीं गिरती 

ड्योढ़ी की दरारों पे उग आये है स्याह साये

हाथों से पंखा झलती अब हवा नहीं फिरती 

फ़्लाइओवर है, पुल है, हैं चौड़ी चौड़ी सड़कें 

घर तक ले जाए हमें जो वो राह नहीं मिलती 

ये फ़ाख्ते, कबूतर क्यों चुनते हैं तिनके दिन भर 

आँधियों से तो किसी को पनाह नहीं मिलती 

Published by

Piyush Kaushal

Naive and Untamed!

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