काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं
काग़ज़ की नाव है
पत्थर के फ़रिश्ते हैं
हम बिकाऊ तो नहीं हैं पर
हर मोड़ पर हम बिकते हैं
जहां दरारें ना भरी जाएँ यकलख़्त
वो रिश्ते कहाँ टिकते हैं
वहाँ तदबीर टूट जाती हैं
जहां तासीर हम लिखते हैं