टलेगा जब बनवास राम आयेंगे
जब छूटेगी सब आस राम आयेंगे
सागर का कंठ सुखाने को
पतितों को हृदय लगाने को
जब शबरी सी हो आस राम आयेंगे
कीचड़ में कमल खिलाने को
नैया को पार लगाने को
केवट सा हो विश्वास राम आयेंगे
छल कपट द्वेष और अहंकार के आँगन में
जहां सत्य हो करता वास राम आयेंगे