नज़र नज़र की बात है नज़र नज़र उतारी गई
बस एक मोहब्बत के नाम पे ना जाने कितनी ग़ज़लें वारी गई
कतरा कतरा पिघला हूँ रोशनी की चाह में
मुझसे ये अँधेरों की उधारी ना उतारी गई
कोई हंस के बोले तो साथ चल देता हूँ
जाने कहाँ अपनी ख़ुद्दारी गई
दश्त-ए-तन्हाई ए हिज्र में खड़ा सोचता हूँ
कहाँ वो यार गये कहाँ वो यारी गई