मेरी कुछ नज़्में हुईं कुछ अफ़साने हुए
मुझसे बिछड़े जमाने को जमाने हुए
हर सालगिरह पर गिरहें उलझती जाती हैं
हम जितने नए हुए, पुराने हुए
एक ख्वाहिश के हत्थे है एक दीवाना सूली पे
ज़रा गिन के बता तो कितने दीवाने हुए
लहू निचोड़ कर मुस्कुराना पड़ता है
भला ये कैसे रिश्ते निभाने हुए
कभी फुर्सत में हमें मिलने तो आ जिंदगी
बहुत अब तेरे बहाने हुए
पियूष कौशल