पतंगे

कुछ नज़्में उधार ली गयीं कुछ नज़्में उधार दी गयीं

ये उम्रें बस ऐसे ही गुज़ार दी गयी

वो जो सपने भुला देने की नसीहत थी ज़माने की

अफ़सोस की वो बेकार ही गयी

उड़ान तो देखो ज़रा हुंकारें भरने वालों की

बारिशों के मौसम में पतंगे उतार ली गयी

उलझे उलझे रसतो से गुज़रे तो क्या हुआ

हुआ यूँ की ज़िंदगी सँवार ली गयी

Published by

Piyush Kaushal

Naive and Untamed!

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