सूरज छिपे तो रात बता देता है
वक़्त आदमी की औकात बता देता है
असली चेहरे यहाँ नज़र नहीं आते लोगों के
वरना चेहरा तो हर एक बात बता देता है
प्रजातंत्र ने आँखें बंद कर ली हैं शायद आजकल
वरना कोण भरी दोपहर को रात बता देता है
लहू रो कर उठी हैं कुछ माएँ सरहदों पर
तिरंगा ओढ़ के कफ़न में कोई अपनी जात बता देता है