मैं उठा सुबह तो दस्तक पे थी एक आरज़ू
सांस लेती मुस्कुराती कुछ ज़रा बेशर्म सी
ख़्वाबों के बीच कुछ गिरता हुआ पकड़ा गए
पलकों के परदे से जो दो नयन खुले
देख सपनो को हकीकत में निखरता वो नयन
कुछ ज़रा घबरा गए, कुछ ज़रा भरमा गए
ख्वाब देखा था यूँ कहकर दिल को समझाया ज़रा
आँख मूंदी, नींद थामी और ज़रा अंगड़ाई ली
मंज़िलों से रूबरू हो कर भी में न हुआ
आदतों ने इस कदर कुछ बुन लिए थे फासले
नींद की आगोश में देखा फिर से उस ख्वाब को
सिलसिले फिर से वही कश्मकश के आ गए
Waah, waah! Khwabo ki duniya wakai badi haseen hoti hai, kya khub likha hai.. bahut badhiya 🙂
Thanks Arti 🙂
Lovely. Especially loved the lines:
Manzilon se roobaro ho kar bhi wo na hue
Aadaton ne is kadar kuch bun liye they faasle”
ps: IMHO, it will read the best in Devanagari script. Try Google Hindi type and repost.
Thanks for your appreciation friend…welcome to the blog 🙂
Would surely try out your suggestion…thanks!
Beautiful lines! nazm bahut khubsurat bani hai…inshallah!
Shukriya Shafiq sahib! 🙂
Kya baat hai!
🙂