तस्वीरों से पूछता हूँ बोलती तुम क्यों नहीं
बेखुदी में लफ़्ज़ों को इंकार कर देता हूँ मैं
खूबसूरती से पूछता हूँ एहतराम -ऐ-शाम क्यों
बेशक्लि में कुछ ज़रा श्रृंगार कर लेता हूँ मैं
सागरों से पूछता हूँ लहरों का है साथ क्यों
रिश्तों को तो अब यूँ ही बदनाम कर देता हूँ मैं
ख़्वाबों से मैं पूछता हूँ है तेरा रहबर क कहाँ
आँखों के इस शौक को बेज़ार कर देता हूँ मैं
आंसुओं से पूछता हूँ मायने मैं जश्न के
काफिरों को मंज़िल से आज़ाद कर देता हूँ मैं
मौत से मैं पूछता हूँ जीने का है खौफ क्यों
एक क़त्ल से खुद को यूँ ही आज़ाद कर लेता हूँ मैं
तेरे फ़िराक़-ऐ-इश्क़ में ऐ ज़िन्दगी
एहसास के एहसास को वीरान कर देता हूँ मैं
kya baat kya baat kya baat!!!
🙂
“Saagaron se puchta hun lehron ka hai saath kyun
rishton ko to ab yun hi badnaam kar deta hun main”
amazing line!
Thanks Pravanjan! 🙂
Feels so good to come here after such a long time — Awesome lines, Piyush! Thoughtful and melodious at the same time, signature you! 🙂
That was a generous comment. Thanks Arti 🙂