ये ज़िन्दगी

कहीं कुछ हो की
तक़दीरें बदल जाएँ ये अश्क़ों की …

दिल में तलब है की
मस्जिदें बदल जाएँ ये सजदों की ..

क्या हो तुम और क्या हैं हम ..
ग़म ही में ढूँढ़ते है ग़म..

बात तब हो की जब मौत भी हो ठहाकों की
करें जज़्बात का सौदा
या अपने आप का सौदा

नज़्म तब हो की
कुछ बातें सुनी जाए ये जज़्बों की

 खफा खुद से या खुद-आ से
लहर सी इस धरा से
या उफनते आसमान से

कहें कुछ भी मगर ये सब
मेहेरबानी है रस्मों की

लडखपन मैं सरकती धुप
टहलती नींद बचपन की

वो किस्से मोहब्बत के,
वो चेहरे पे चमक सी अलग

करम उसके भरम उसके
फिसलती रेत वक़्तों की

Published by

Piyush Kaushal

Naive and Untamed!

18 thoughts on “ये ज़िन्दगी”

  1. bahut hi khoobsurat tarike se is zindagi ko nihaara hai apne… kya nazm bani hai

    “Ladakhpan main sarakti dhoop

    Tehalti neend bachpan ki

    Wo kisse mohabbat ke,

    Wo chehre pe chamak si alag

    Karam uske, bharam uske

    Fisalti ret waqton ki”

  2. Ladakhpan main sarakti dhoop

    Tehalti neend bachpan ki

    Wo kisse mohabbat ke,

    Wo chehre pe chamak si alag

    Karam uske, bharam uske

    Fisalti ret waqton ki
    My favourite lines. Infact hindi poetry reminds me of Bachpan when I used to hear the poems in hindi and be inspired with the flow and the import 🙂

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