ग़म

इन बारिशों से जब बेज़ार हुआ दिल
मेरी आँखें सूख गयी
और ख़ामोशी बोलने लगी मुझसे
मेरे ग़म का हाल

ये जो ग़म है मेरा
बहुत परेशान है
कुछ समय से बस
चलता ही जा रहा है

थक गया है ये ख़ुशी
की बाट तकते तकते
आँखों के नीर सा
नमकीन हो गया है

ख़ुशी गयी है कहीं परदेस
किसी परदेसी के मुस्कराहट में कैद
वक़्त के तस्सवुर में जैसे
किसी पहले मौसम का प्यार हो गयी है

धुप के अंचल में
इकतरफा समां गया ग़म
पुराने सामान सी
हालत हो गयी है

उसकी बेबसी देख मैं रोया, फिर मुस्कुराया
किसी पागल सी कैफियत हो गयी है

मैं

तस्वीरों से पूछता हूँ बोलती तुम क्यों नहीं
बेखुदी में लफ़्ज़ों को इंकार कर देता हूँ मैं

खूबसूरती से पूछता हूँ एहतराम -ऐ-शाम क्यों
बेशक्लि में कुछ ज़रा श्रृंगार कर लेता हूँ मैं

सागरों से पूछता हूँ लहरों का है साथ क्यों
रिश्तों को तो अब यूँ ही बदनाम कर देता हूँ मैं

ख़्वाबों से मैं पूछता हूँ है तेरा रहबर क कहाँ
आँखों के इस शौक को बेज़ार कर देता हूँ मैं

आंसुओं से पूछता हूँ मायने मैं जश्न के
काफिरों को मंज़िल से आज़ाद कर देता हूँ मैं

मौत से मैं पूछता हूँ जीने का है खौफ क्यों
एक क़त्ल से खुद को यूँ ही आज़ाद कर लेता हूँ मैं

तेरे फ़िराक़-ऐ-इश्क़ में ऐ ज़िन्दगी
एहसास के एहसास को वीरान  कर देता हूँ मैं

ये ज़िन्दगी

कहीं कुछ हो की
तक़दीरें बदल जाएँ ये अश्क़ों की …

दिल में तलब है की
मस्जिदें बदल जाएँ ये सजदों की ..

क्या हो तुम और क्या हैं हम ..
ग़म ही में ढूँढ़ते है ग़म..

बात तब हो की जब मौत भी हो ठहाकों की
करें जज़्बात का सौदा
या अपने आप का सौदा

नज़्म तब हो की
कुछ बातें सुनी जाए ये जज़्बों की

 खफा खुद से या खुद-आ से
लहर सी इस धरा से
या उफनते आसमान से

कहें कुछ भी मगर ये सब
मेहेरबानी है रस्मों की

लडखपन मैं सरकती धुप
टहलती नींद बचपन की

वो किस्से मोहब्बत के,
वो चेहरे पे चमक सी अलग

करम उसके भरम उसके
फिसलती रेत वक़्तों की

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