इंसा जब से बंद है घर में
परिंदे अब ख़ुश हैं शहर में
इंसा जब से बंद है घर में
परिंदे अब ख़ुश हैं शहर में
बहुत बेज़ुबानों को चाव से खाया
बहुतों की छीनी आज़ादी
बारी अब तुम्हारी है बर्खुरदार
ले सको तो ले लो आज़ादी
क़त्ल-ए-आम करो खूब, अपनी ही राख उड़ायो
अब किस धर्म के जानवर को कहूँ की इंसान बन जाओ
मेरा मुझ में, तेरा तुझमें बस शिव है
जो कुछ नहीं वो शिव है
जो सब कुछ है वो भी शिव है
ब्रह्मांड शिव, और शून्य भी शिव है
ना गिरिजा ना मस्जिद ना शिवाले ढूँढो
पहले भूखों के लिए निवाले ढूँढो
खादी वालों का तो धंधा ही है ये सब
जिसने अपना ही घर जलाया पहले वो मशालें ढूँढो
रोशनी दिखा कर अक्सर लूट लेते हैं लोग
बेहतर ये है की तुम अँधेरो में उजाले ढूँढो
एलान-ऐ-जंग हर बात पर ना किया करो
कुछ नये मसले ढूँढो, कुछ नयी मिसालें ढूँढो
What? Oh why? But where?
They ain’t taking you nowhere
Plug your earphones,
play some weird song
And take a flight downstairs
Oh no no, don’t go to work
Take no bother, damn don’t care
Make a cocktail of your thoughts
And do a random dare
Grab a cloud from that canvas
Eat an ice cream on a fake chair
Drop the douche from your bag
And put your life back in there
Make weapons of love and
Annihilate the halo of despair
Be the HU-MAN
पर कतर लो आसमाँ के, उड़ती पतंगो को हवा ना दो
ये शहर बीमार है बहुत, अब और इसे दवा ना दो
क्या बात है की अब मुझको
ख़्वाबों में भी नींद नहीं आती
कई पतझड़ चला हुँ नंगे पाँव यक्सर
लोगों को लगता है कि मैं बहारों में उठा
चुप रहना मेरा जमाने को नापसंद आया
आवाज़ बुलंद करी तो मैं अशआरों (लफ़्ज़ों)से उठा
मुर्दों से भी सिर्फ़ माँगने आते है लोग
बात तब की है जब मैं मज़ारों से उठा
राख होने का मेरे बहुत यक़ीन था सबको
मैं वही शोला हूँ जो शरारों (चिंगरीयों) से उठा
उगने लगीं हैं दिल पे फिर यादें तेरी
इक बार फिर से मुझे पतझड़ का इंतज़ार है