ज़िन्दगी से जो चमक ली थी उधार लड़खपन में
लौटा रहा हूँ अब वापिस, आहिस्ता आहिस्ता
सूरज मिलता नहीं मुझसे अब बहुत दिन हुए
रात करवटों में गुज़र जाती है अक्सर, आहिस्ता आहिस्ता
गया वो दौर की रिश्ते सँभालने, पिरोने पड़ते थे
आसान किश्तों में अब बिकता है प्यार, आहिस्ता आहिस्ता
बस कुछ झूठ हैं मेरे जो अब फल फूल रहे हैं
सच तो सारे दम तोड़ चुके हैं यहां,आहिस्ता आहिस्ता